There is rhythm in everything in life... and a poem somehow seemed apt to capture those many moments and emotions in life... love... longing... despair... spirituality... religion... just about everything!
Sunday, September 20, 2009
दोपहर ... Afternoon Walk..
कुछ देर धूप जलती रही...
कुछ देर छाव छुपती रही....
कुछ देर हम चलते रहे और
कुछ देर खामोशियाँ चुभती रही...
कुछ ख़्वाब हम बुनने लगे...
कुछ ख़्वाब हम चुनने लगे...
कुछ ख़्वाब तनहा रह गए और
कुछ ख़्वाब युही गुनगुनाने लगे...
कुछ तो हुआ था शायद...
कुछ तो मिटी थी सरहद...
कुछ तो बेख़बर थे हम और
कुछ तो खुशियाँ थी दिल में बेहद...
कुछ यादें धुंधला गई है...
कुछ यादें बहला गई है...
कुछ यादें रूठे से है और
कुछ यादें हमें रूला गई है...
कुछ देर तक हम साथ चले...
कुछ देर तक शाम ना धले...
कुछ देर तक हम फिर मिले और
कुछ देर तक लगे ज़िन्दगी गले...
* This is dedicated to the afternoon walks I took together with a friend...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1. धुप - धूप
ReplyDelete२. "पिघले थे सरहद" - IDK, but i doubt if सरहद can be used in a plural form. maybe we can go with that anyway but again पिघली थी सरहदें is totally safe.. will mess up the rhymes tho..
3.
कुछ यादें धुंधला गयी है...
कुछ यादें भूला गयी है... (?!?, भुलाई??)
कुछ यादें रूठी सी है और
कुछ यादें हमें रुला गयी है...
कुछ देर तक हम साथ चले...
कुछ देर तक शाम ना ढले...
कुछ देर तक हम फिर मिले और
कुछ देर तक लगे ज़िन्दगी गले...
more or less, what i remember by this is that afternoon when you tried to help through that embarrassing contest! hehehehhehe
strangely, it helped.. ;-)
thanks, have updated it.. made some changes...
ReplyDeleteI wrote it with regard to a friend in ANI, the one who had gone to Mumbai.. We use to have this walk post lunch... around the block..