Wednesday, March 25, 2015

एक शाम, एक लम्हा (An Evening... A Moment)

एक शाम रुकी सी है कही..
एक लम्हा ठहरा हुआ है कही..

कुछ एहसास, कुछ अलफ़ाज़,
कुछ नग़में, और वो आवाज़..

बेसब्र था वक़्त,
बेचैन था वक़्त,
जो आया तो, न जाने की
ज़िद पर था वक़्त..

जी तो आए मगर
वो लम्हा ठहर गया है वही..

वो शाम वही रहने दो.. 
वो लम्हा वही ठहरने दो.. 

कभी मायूस दिन के चलते,
उस शाम से रहत ले लेंगे..
कभी तन्हा रातों में,
उस लम्हे को ओढ़कर सो लेंगे..

Wednesday, February 25, 2015

क्षितिज (Horizon)


(Clicked by me. Shillong, Meghalaya)

शायद वो धुँधली सी एक शाम थी 
ख़ामोश चाय के प्यालों से बादलों का गुज़र जाना 
और दूर क्षितिज में, तेरी यादों का बिखड़ जाना 

तन्हा हो कर भी, तन्हाई से महरूम थे 
था कुछ ऐसा रिश्ता उस ख़ामोशी का सुकून से