Friday, October 16, 2009

ख्याल या सवाल

सुना घर, खाली मकान
सन्नातों का डेरा है ये दिल मेरा

रात रोती रहती है, शाम बुझी सी रहती है
दिन में छाई रहती है एक खुमारी सी

नशे में गुम हो गए है हर दर्द कही
जो होश में आ जाऊ तो डर लगता है, मर न जाऊ कही

सिसकियाँ गूंजते है, ऐ ज़िन्दगी तेरे खाली कमरों से
मेरे आर्जूवों को कही तुने तो नहीं छुपा रखा कही

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