एक शाम रुकी सी है कही..
एक लम्हा ठहरा हुआ है कही..
कुछ एहसास, कुछ अलफ़ाज़,
कुछ नग़में, और वो आवाज़..
बेसब्र था वक़्त,
बेचैन था वक़्त,
जो आया तो, न जाने की
ज़िद पर था वक़्त..
जी तो आए मगर
वो लम्हा ठहर गया है वही..
वो शाम वही रहने दो..
वो लम्हा वही ठहरने दो..
कभी मायूस दिन के चलते,
उस शाम से रहत ले लेंगे..
कभी तन्हा रातों में,
उस लम्हे को ओढ़कर सो लेंगे..
एक लम्हा ठहरा हुआ है कही..
कुछ एहसास, कुछ अलफ़ाज़,
कुछ नग़में, और वो आवाज़..
बेसब्र था वक़्त,
बेचैन था वक़्त,
जो आया तो, न जाने की
ज़िद पर था वक़्त..
जी तो आए मगर
वो लम्हा ठहर गया है वही..
वो शाम वही रहने दो..
वो लम्हा वही ठहरने दो..
कभी मायूस दिन के चलते,
उस शाम से रहत ले लेंगे..
कभी तन्हा रातों में,
उस लम्हे को ओढ़कर सो लेंगे..